लोकसभा चुनाव में मोकामा वाले सूरजभान सिंह के परिवार का राजनीतिक दमखम इस बार भूमिहार बहुल नवादा, बेगूसराय या मुंगेर के बदले भूमिहार-राजपूत बहुल महाराजगंज सीट पर दिखेगा। सूरजभान के रिश्ते में समधी और सारण स्थानीय निकाय सीट से लगातार दूसरी बार एमएलसी सच्चिदानंद राय ने महाराजगंज लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। प्रशांत किशोर का जन सुराज राय का साथ देगा। महाराजगंज में भाजपा ने दो बार से जीत रहे सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल को टिकट दिया है जबकि महागठबंधन में सीट कांग्रेस को गई है और उसके कैंडिडेट का ऐलान बाकी है। संभावना है कि कांग्रेस यहां किसी भूमिहार को उतारेगी। सच्चिदानंद राय का बहुत बड़ा कारोबार है और उनकी गिनती बिहार के सबसे अमीर राजनेताओं में होती है।
सच्चिदानंद राय ने कहा कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भक्त हैं और आजीवन उनके भक्त रहेंगे। भाजपा से टिकट ना मिलने के सवाल पर उन्होंने कहा कि समझ नहीं आया कि भाजपा चला रहे नेता क्या करना चाहते हैं। सच्चिदानंद ने दावा किया है कि वो निर्दलीय लड़कर भाजपा और कांग्रेस दोनों के कैंडिडेट को हरा देंगे। सच्चिदानंद इलाके में भूमिहारों के नेता के तौर पर उभरे हैं जबकि जनार्दन सिंह सिग्रीवाल की गिनती राजपूत नेताओं में होती है। पड़ोस की सारण लोकसभा सीट पर भी बीजेपी ने राजपूत जाति के राजीव प्रताप रूडी को उतारा है जिनका मुकाबला लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्या से होगा।
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महाराजगंज लोकसभा के अंदर जो छह विधानसभा सीटें हैं उनमें चार एकमा, मांझी, बनियापुर और तरैया सारण जिले के अंदर आती हैं। दो सीट गौरेयाकोठी और महाराजगंज सीवान जिले में हैं। सीवान लोकसभा से एनडीए ने जेडीयू की विजयलक्ष्मी कुशवाहा को लड़ाया है जबकि महागठबंधन की तरफ से हिना शहाब या अवध बिहारी चौधरी लड़ सकते हैं। एनडीए ने महाराजगंज समेत आस-पास की तीन लोकसभा सीटों में दो पर राजपूत और एक पर कोइरी कैंडिडेट को लड़ाया है।
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महाराजगंज लोकसभा सीट पर वोटर लगभग 19 लाख हैं। बिहार की जातीय गणना के हिसाब से इस इलाके की 26.50 लाख आबादी में लगभग 3.30 लाख भूमिहार, 3.09 लाख राजपूत, 2.91 लाख यादव, 2.67 लाख मुसलमान, 1.85 लाख कोइरी, 1.80 लाख चमार, 1.72 लाख ब्राह्मण, 90 हजार नोनिया, 70 हजार कुर्मी और 70 हजार दुसाध की जनसंख्या है। वोटर का अनुपात भी कमोबेश इसी तरह का है।
स्थानीय निकाय के एमएलसी होने का सच्चिदानंद राय को क्या है फायदा?
2022 के विधान परिषद चुनाव से प्रशांत किशोर की जन सुराज के साथ चल रहे सच्चिदानंद पहले भाजपा में थे। 2015 में पहली बार भाजपा के समर्थन से ही विधान पार्षद का चुनाव जीते थे। 2022 में भाजपा ने दोबारा नहीं लड़ाया तो निर्दलीय लड़े और पहली वरीयता के 56 परसेंट वोट के साथ भारी मार्जिन से जीते। बीजेपी समर्थित कैंडिडेट धर्मेंद्र सिंह को 254 वोट मिले जो 5 परसेंट से भी कम थे। दूसरे नंबर पर रहे आरजेडी के सुधांशु रंजन को 1982 वोट मिला था। कुल वोट 5169 पड़े थे। लोकसभा चुनाव में उनके ये वोटर बड़े काम के साबित हो सकते हैं।
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विधान परिषद के स्थानीय निकाय चुनाव में पंचायती राज के तीनों स्तर के निर्वाचित जनप्रतिनिधि वोटर होते हैं जो अमूमन राजनीतिक कार्यकर्ता होते हैं। ग्राम पंचायत के वार्ड सदस्य व मुखिया, प्रखंड स्तर पर पंचायत समिति सदस्य व ब्लॉक प्रमुख और जिला स्तर पर जिला पार्षद और जिला परिषद अध्यक्ष। सच्चिदानंद राय इस चुनाव को एक बार भाजपा के समर्थन से और दूसरी बार भाजपा के खिलाफ निर्दलीय जीतकर साबित कर चुके हैं कि गांव-गांव में उनका मजबूत राजनीतिक नेटवर्क है। उनके लड़ने से जनार्दन सिंह सिग्रीवाल को भूमिहार वोट की किल्लत हो सकती है क्योंकि उनके लिए सूरजभान सिंह भी प्रचार कर सकते हैं।
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सूरजभान सिंह की बहन की बेटी की शादी सच्चिदानंद राय के बेटे से हुई है। इस रिश्ते के सूत्रधार सूरजभान सिंह ही थे। सूरजभान सिंह खुद बलिया लोकसभा (अब बेगूसराय), पत्नी वीणा देवी मुंगेर लोकसभा और भाई चंदन सिंह नवादा लोकसभा से सांसद का चुनाव जीते चुके हैं। तीनों सीटें भूमिहार बहुल हैं। चंदन सिंह और सूरजभान सिंह लोजपा के अंदर टूट के बाद पशुपति पारस के साथ चले गए थे और चिराग पासवान को लाने के लिए भाजपा ने पारस और उनकी रालोजपा के सांसदों की बलि दे दी। सूरजभान सिंह के अपने परिवार से इस बार कोई चुनाव नहीं लड़ रहा है लेकिन अब समधी सच्चिदानंद राय के मैदान में उतरने की घोषणा से ये तय है कि उनके समर्थक कहां कैंप करेंगे।
सच्चिदानंद राय का दावा है कि हर गांव में उनका संगठन है जिसमें हर जाति के लोग हैं। महागठबंधन की तरफ से कांग्रेस अगर भूमिहार कैंडिडेट देती है तो क्या होगा, इस सवाल पर राय कहते हैं कि बाहर के लोगों को यहां से लड़ाने का कोई फायदा नहीं होगा। चर्चा है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह अपने बेटे आकाश सिंह के लिए यह सीट मांग रहे हैं। सच्चिदानंद राय ने दावा किया है कि उनके निर्दलीय लड़ने से भाजपा के साथ-साथ राजद और कांग्रेस के वोटर भी जाति से ऊपर उठकर उनका साथ देंगे।
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चलते-चलते ये भी बता दें कि महाराजगंज वो लोकसभा सीट है जहां से पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी एक बार चुनाव जीते हैं और आरजेडी के चर्चित नेता प्रभुनाथ सिंह यहां से कई बार एमपी रहे हैं। इस सीट से अब तक 14 बार राजपूत जाति के सांसद जीते हैं जिसमें चंद्रशेखर, प्रभुनाथ सिंह और जनार्दन सिंह सिग्रीवाल शामिल हैं। एक भूमिहार और वो भी निर्दलीय, राजपूतों के इस गढ़ को तोड़ पाएगा या नहीं, ये 4 जून को नतीजों के बाद ही साफ होगा। लेकिन मुकाबला तीखा और कड़ा होगा, इतना तय है।