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अतीक अहमद की तरह मुख्तार अंसारी का भी नाम हत्या, हत्या के प्रयास, रंगदारी, धमकी के मामलों में लगातार आता रहा। तीन दशक तक दोनों कानून को अपने हाथों में लेकर खेलते रहे। दोनों ने अपराध की दुनिया से राजनीति में एंट्री ली। अपना गैंग बनाया। सबसे बड़ा अपराध भी दोनों ने किया तो कारण एक ही था। यहां तक कि हत्या का अंदाज भी एक ही रहा। अतीक और मुख्तार की मौत भी न्यायिक और पुलिस हिरासत में हुई। अंतर केवल इतना था कि अतीक को गोली बरसा कर मौत के घाट उतारा गया, मुख्तार जेल में ही दम तोड़ गया। यहीं नहीं, न अतीक के जनाजे में पत्नी और बेटा शामिल हुआ। और न अब मुख्तार का अंतिम बार चेहरा देखने पत्नी और बेटे के आने की कोई संभावना नजर आती है।
माफिया मुख्तार अंसारी का शव बांदा के मेडिकल कॉलेज में पोस्टमार्टम के बाद परिजनों को सौंप दिया गया है। शव को सुपुर्दे खाक के लिए गाजीपुर के लिए रवाना भी कर दिया गया है। मुख्तार के पिता और मां के बगल में ही उसका कब्र खोद दिया गया है। मुख्तार का शव पहले उसके घर फाटक पहुचेगा। इसके बाद वहीं से जनाजा कालीबाग स्थित कब्रिस्तान के लिए रवाना होगा। एक तरफ गाजीपुर में मुख्तार के शव का इंतजार हो रहा है तो दूसरी तरफ उसकी पत्नी अफ्शां अंसारी को लोगों की नजरें उसी तरह खोज रही हैं जिस तरह अतीक अहमद के जनाजे के दौरान उसकी पत्नी शाइस्ता परवीन को खोज रही थीं।
अतीक की तरह मुख्तार अंसारी का अंतिम बार चेहरा उसका बेटा भी नहीं देख सकेगा। अतीक के जनाजे के दौरान एक बेटा कुछ दिन पहले ही पुलिस मुठभेड़ में मार गिराया गया था तो दो बेटे संरक्षण गृह औऱ एक जेल में बंद था। अब मुख्तार अंसारी का बड़ा बेटा अब्बास अंसारी भी जेल में है। उसे जनाजे में शामिल होने की इजाजत नहीं मिल सकी है। हाईकोर्ट और सु्प्रीम कोर्ट में लगाई गई उसकी अर्जी पर सुनवाई ही नहीं हो सकी है।
एक जैसी रंजिश और अदावत की कहानी
अतीक के नाम सबसे बड़ा अपराध राजू पाल हत्याकांड था। इसमें अतीक के गुर्गों ने तब विधायक रहे राजू पाल को घेर कर गोलियां बरसाईं थी। राजू पाल के साथ रहे लोग भी मारे गए थे। इसी तरह मुख्तार पर विधायक कृष्णा नंद राय की सनसनीखेज हत्या का आरोप था। कृष्णा नंद राय को भी घेर कर गोलियां बरसाईं गई औऱ जो भी उनके साथ था सभी मारे गए थे।
राजू पाल और कृष्णा नंद राय का दोष भी एक ही था। राजू पाल ने अतीक अहमद के भाई अशरफ को चुनाव में हराया था तो कृष्णानंद राय ने मुख्तार अंसारी की भाई अफजाल अंसारी को हरा दिया था। संयोग से राजू पाल हत्याकांड का फैसला भी आज तब आया है जब मुख्तार अंसारी का शव मोर्चरी में पड़ा पोस्टमार्टम का इंतजार कर रहा था।
राजू पाल के चुनाव जीतने के बाद शुरू हुई थी टसल
2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक के फूलपुर से सांसद चुने जाने के बाद शहर पश्चिमी सीट खाली हुई थी, जिस पर 2004 दिसंबर में उप चुनाव हुआ था। इस चुनाव में सपा से अतीक का भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ प्रत्याशी था तो बसपा ने राजू पाल को उतारा था। राजू पाल ने अशरफ को हरा दिया था, अशरफ इस हार को बर्दाश्त नहीं कर सका। इसी टसल में 25 जनवरी 2005 को राजू पाल की सरेआम हत्या कर दी गई थी।
कृष्णानंद के चुनाव जीतते ही बढ़ गई रंजिश
कृष्णानंद राय ने मुख्तार और अफजाल अंसारी के गढ़ माने जाने वाले मुहम्मदाबाद में 2002 का विधानसभा चुनाव जीत लिया था। वह अफजाल अंसारी को हराकर बीजेपी विधायक बने थे। इससे अंसारी बंधुओं और कृष्णानंद राय के बीच दुश्मनी और बढ़ गई। 2005 में कृष्णानंद को घेर कर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं गईं। उनके साथ सात लोगों की हत्या कर दी गई थी।